इस दिए को क्यों सजाते हो ?
तेल ही तो भरना है,
बाती सजेगी, जियेगी,
लौ थिरकेगी,
उजाला पसरेगा,
तेल चुकेगा,
दिए तले तो अँधेरा ही रहेगा,
क्या ये इसका उपकार होगा ?
जब बाती जी लेगी,
तेल सारा पी लेगी,
एक पूँछ दिए से चिपकी
छोड़ देगी...
और साथ में कालिख होगी,
फिर इसमें कौन दोबारा तेल भरेगा?
इसे तो फोड़ा ही जाएगा...
तुम यूँ ही पसीना बहाते हो,
इस दिए को क्यों सजाते हो ?
(c) गौरव शर्मा
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