मंगलवार, 20 जून 2023

मुस्कुराइए, आप लखनऊ में है

 


मुस्कुराइए, आप लखनऊ में है


इस  बार लखनऊ कुछ ज्यादा ही साफ सुथरा लगा। ट्रैफिक कहीं कहीं दिल्ली जैसा ही था। आलमबाग से कैंट होते हुए गोमती नगर तक का ओला का सफ़र मजेदार रहा। केंटोनमेंट की सड़क के किनारे पर शिवमंगल सिंह सुमन जी की "पुष्प की अभिलाषा" पढ़ कर खुद के उनकी बिरादरी का (कवि) होने पर गर्व हुआ।

जनेश्वर मिश्र पार्क के बाहर लगी सूर्य नमस्कार करती प्रतिमाएं आकर्षक थी। वीडियो बनाना चाहता था लेकिन थका हुआ था। पंख वाले सात घोड़ों का चौराहा और डिवाइडर की हरियाली देख कर गर्व हुआ कि मेरे राज्य की राजधानी भी कुछ कम नहीं है।

गोमती नगर से महानगर तक की ओला के ड्राइवर कुछ ज्यादा ही बातूनी थे। मेरे सारे प्रश्नों का उन्होंने किसी लखनऊ


वासी की तरह ही गर्व से विस्तारपूर्वक उत्तर दिया। मायावती, अखिलेश यादव और योगी जी तीनों के कार्यकालों में अंतर का अपना विश्लेषण किया।

मायावती के हाथी वाले पार्क और जनेश्वर मिश्र पार्क का उनका अंतर मजेदार था।

"जनेश्वर मिश्र पार्क अखिलेश बनाए थे। बड़ा है बहुत। मायावती के पार्क में फैमिली आती हैं। सन्डे है ना, सो भीड़ है। जनेश्वर मिश्र पार्क में लड़का लडकी आते हैं। कही कोने में बैठ कर घुपशुप कर लेते हैं।"

महानगर से वापसी का सफ़र हमने लखनऊ मेट्रो से किया। चारबाग रेलवे स्टेशन के गुम्बद की रोशनी के बदलते रंग राज्य की राजधानी के वैभव का गीत गा रहे थे। आलमबाग का सर्राफा बाजार रौनक से खनक रहा था। 

लखनऊ जाकर अब दोबारा कहा जा सकता है शायद "मुस्कुराइए, आप लखनऊ में हैं"


गौरव शर्मा

सोमवार, 19 जून 2023

सनातनी आदर्शों की परिभाषा हैं राम



सनातनी आदर्शों की परिभाषा हैं राम 



 श्री राम के अस्तित्व और जन्म को लेकर अनेक शोध कार्य हुए। कुछ ने राम-युग लाखों वर्ष पूर्व बताया तो कुछ ने ईसा से 300 वर्ष पूर्व। 


मैं विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूँ इसलिए कार्बनडेटिंग को ही सबसे विश्वसनीय मानूंगा। इसके अनुसार राम ईसा से 5121 वर्ष पूर्व हुए। यानी अब से लगभग सात हजार वर्ष पूर्व।

गर्व का विषय है कि लगभग सात हजार वर्ष पूर्व भी हिंदू और हिंदू-सभ्यता नैतिक मूल्यों, संस्कारों, संबंधों की मर्यादा और सामाजिक नियम एवम् दायित्वों के प्रति इतनी सजग थी।

मैं सूर्यद्विज सनातनी ब्राह्मण हूँ। राम मेरे हृदय में बसते हैं। श्री राम का अस्तित्व मेरे लिए उतना ही सत्य है जितना मेरा स्वयं का अस्तित्व। जो लोग किंतु- परंतु में फंसे हैं, आदि-संत वाल्मीकि द्वारा रचे चरित्रों को सत्य चाहे ना माने, उनके द्वारा रचित ग्रंथ को तो सत्य मानते होंगे। 

साहित्य किसी समय के समाज और संस्कृति का सबसे मौलिक साक्षात्कार होता है। साहित्यकार वही लिखता है जो उसने देखा, समझा, या जिया होता है।
मैं वर्ष में कम से कम एक बार श्रद्धेय संत तुलसीदास जी की रामचरित मानस का पाठ करता हूं और नियमित रूप से सुंदरकांड पढ़ता हूं। जितनी बार पढ़ता हूं, चकित भी होता हूं और गर्वित भी।
कितने उच्च पारिवारिक और सामाजिक मूल्य थे। गुरुओं के प्रति क्या आदर-भाव था कि एक पिता पुत्र को स्वयं से दूर नहीं भेजना चाहता था किंतु गुरु की आज्ञा की अवहेलना नही कर सकता था। एक भाई अपने नव वैवाहिक जीवन की आहुति दे देता है और दूसरा , माँ द्वारा षडयंत्रों में पकाकर ही सही, किन्तु परोस कर दिया गया राज्य ठुकरा दिया। एक कोमलांगी, नवविवाहित पत्नी जो आभूषण, वैभव, ऐश्वर्य को अपने पतिव्रत पर न्यौछावर कर पति के साथ वन को चल देती है। महावीर हनुमान जैसा भक्त जिसने हृदय में राम को बसा लिया था। महर्षि वाल्मीकि ने खलनायक का चरित्र भी ऐसा रचा जिसके आदर्श कलयुग के सबसे सज्जन पुरुष से भी ऊँचे होंगे।

मुझे गर्व होता है सनातनी सभ्यता पर जिसके ग्रंथों में सात हज़ार वर्ष पूर्व बंदर, भालू और गरुड़ भी आदर्शवादी थे। मित्रता पूज्य थी। अग्नि की शपथ विश्वसनीयता सुनिश्चित करती थी। अग्रज पिता तुल्य होता था और उसकी पत्नी माता तुल्य। तब भी सनातनी नदी, पहाड़, आकाश, अग्नि, वायु, सागर और भूमि को पूजते थे। 

निष्पक्ष होकर सोचें, धर्मों की व्यर्थ प्रतिद्वंदिता को परे करके सोचें, मनुष्य होकर सोचें, तो क्या रामायण के आदर्श अनुसरणीय नहीं हैं। राम को जानने के बाद किस धर्म की माता अपने पुत्र को राम जैसा बनाने की इच्छा नहीं पाल लेगी? 


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