शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

ज़मीं आसमां






ज़मीं आसमां


ज़मीं आसमां से कुछ यूं बोली-
तू जब-तब आँसुओं से मेरा 
दामन भिगोता है
पर क्या कभी मेरे आँसू भी
देखता पोंछता है?

कैसा मीत है तू?



आँसमां मुस्कुराया और बोला -
पगली, मैंने ही सूरज से
यह कह रखा है 
तेरे आँसुओं को गर्म करे
और उड़ा दे
ताकि वो मुझ तक पहुँच सकें
मैं उन्हें सहेजता हूँ
बादल बनाता हूँ

और फिर तुझे नहला देता हूँ
वो मेरे आँसू नहीं हैं,
तेरे ही हैं
मैं तेरे आँसुओं को
खुशियों में बदल कर
तुझे देता हूँ
ऐसा मीत हूँ मैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें