शनिवार, 6 अगस्त 2016

जिंदगी, तू मेरी कविता सी बन जा,



जिंदगी, तू मेरी कविता सी बन जा





जिंदगी, तू मेरी कविता सी बन जा,
जब-तब कागज़ पर उतर जाया कर,
बिना ना-नुकर के 
बिना नखरे, बिना मनुहार के,
अच्छी या बुरी, बस हो जाया कर,
जिंदगी, तू मेरी कविता सी बन जा |


मेरे चेहरे को कभी हाथों में भरकर,
अपने कांधे पर मेरा सर रखकर,
हौले-हौले से थपथपा दिया कर,
कभी लड़ ले, कभी झगड़ लिया कर,
थोड़ी सी देर को रूठ लिया कर,
ज़िन्दगी, तू महसूस होती रहा कर 
जब सोंचूं, कागज़ पर उतर जाया कर,
ज़िन्दगी, तू मेरी कविता सी बन जा |



कभी सौंधी सी, कभी औंधी सी,
कभी कुरकुरी, कभी नरम-नरम,
कभी गुनगुनी, कभी गरम-गरम,
बस मैं जी कर भी मुर्दा सा ना रहूँ,
बिन बात साँसों का एहसान ना लूँ,
तू रोज़ मिलती रहा कर,
दुःख दे या सुखी कर दे, 
बस होती रहा कर,
ज़िन्दगी, तू मेरी कविता सी बन जा |

ना तुक, ना तरन्नुम के चोंचले,
बस जज़्बातों की स्याही 
और लफ़्ज़ों के होंसले,
तू  गायब मत हो जाया कर,
मैं ज़िंदा तो रहता हूँ, 
तू ज़िन्दगी का एहसास करा जाया कर,
तू बस होती रहा कर,
ज़िन्दगी, तू मेरी कविता बन जा |

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