आदमी की आदमियत को गाली है मज़हब
मज़हब धुएं का भी होता है
जब तक क़ैद रहता है दीवारों में
मस्जिद की और मंदिर की |
मज़हब लहू का भी होता है
जब तक क़ैद बहता है रगों में,
मुल्ले की और पंडित की |
आज़ाद छोड़ के ज़रा देखो
धुएं में धुंआ, लहू में लहू
कैसे घुल जाता है,
निवाले बाँट लेता है,
बाँहें फैलाये रहता है,
आदम जब सिर्फ और सिर्फ
आदम बन जाता है |
@ गौरव शर्मा
Amazing....love this one totally!
जवाब देंहटाएंMany thanks, Manasi ji. Your words of appreciation mean a lot.
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