शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

आदमी की आदमियत को गाली है मज़हब









आदमी की आदमियत को गाली है मज़हब 






मज़हब धुएं का भी होता है

जब तक क़ैद रहता है दीवारों में 

मस्जिद की और मंदिर की |

मज़हब लहू का भी होता है

जब तक क़ैद बहता है रगों में,

मुल्ले की और पंडित की |

आज़ाद छोड़ के ज़रा देखो

धुएं में  धुंआ, लहू में लहू 

कैसे घुल जाता है,

निवाले बाँट लेता है,

बाँहें फैलाये रहता है,

आदम जब सिर्फ और सिर्फ 

आदम बन जाता है |

               @ गौरव शर्मा

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