शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

मैं १६ दिसंबर हूँ








मैं १६ दिसंबर हूँ











मैं १६ दिसंबर हूँ,
अभिशप्त, कलंकित |
काश धरा गति बढ़ा ले,
सूरज का चक्कर 
एक कम दिन में लगा ले,
मैं मिट जाना चाहता हूँ|
मर्यादा के शरीर से,
जब मानवता नोच ली गयी थी,
उन घावों को फिर से 
हरा नहीं करना चाहता हूँ, 
मैं मिट जाना चाहता हूँ |

आज हँसी तो  होगी,
ख़ुशी न होगी,
मन में कलेश रहेगा,
शांति न होगी,
जब सूरज बुझेगा,
बदबू सी उड़ेगी,
आज रात विधवा सी आएगी,





रोते तारे, मरासु चाँद,
अट्ठास करती हवा,
हड्डियों तक भेदती वेदना,
सब तड़पेंगे, सब कापेंगे,
मैं ये नहीं चाहता हूँ, 
मैं मिट जाना चाहता हूँ |

      गौरव शर्मा  

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