अनाथ होने की तारीख
कल सुबह पंडित जी के छप्पर पर चाय पीने के लिए रुका था I वहीँ बैठे थे ये सज्जन, ईंटों पर रखी पत्थर की पटरी पर I
मुँह में गुटखा भरा था I मोबाइल सामने पंडित जी के काउंटर पर रखा था I मुंडन होने के बाद आध-आध इंच भर बाल उग आये थे I जिनके बीच चोटी वैसे ही लग रही थी जैसे खेत में बिजूका खड़ा होता है I उस व्यक्ति का चेहरा देखने की मेरी इच्छा नहीं हुई I
"हमारे पापा गुजर गए न," अचानक वह बोला I मैंने तब भी उसकी ओर नहीं देखा I संवेदना जरूर उचकी I
"अरे! कब ?" पंडित जी ने हाथ रोक कर पूछा I शायद शिष्टाचारवश I
"सात तारिख को ," वह बोला, " एँ, नहीं, पांच तारिख को I " पंडित जी के चेहरे पर आश्चर्य तैर गया i मैंने भी उसकी ओर देखा i अब वह सर खुजा रहा था i
सही तारिख शायद खोपड़ी से भी 'डिलीट' हो गयी थी i
अब उसने मोबाइल उठा लिया और जुट गया पिता की मृत्यु की तारीख की खोज में i
उसने मेरी चाय बेस्वाद कर दी थी i उठकर उसे 'नमन' करने को जी चाह रहा था i एक बार तो में पूछ ही बैठा था , "भाई साहब, तेरहवीं हो गयी?" लेकिन मैंने खुद को रोक लिया i
करीब दो मिनट बाद वह उठा, दो कदम दूर गया, पीक थूककर मुँह खाली किया ओर वापस आकर बोला, " चार तारीख को, पंडित जी i
पंडित जी ने राहत की सांस ली i
चाय ख़तम होने तक मैं उसे घूरता रहा i
सुबह-सुबह ऐसे महानुभावों से परिचय होना, पता नहीं, सौभाग्य था या दुर्भाग्य i
भला अपने अनाथ होने की तारीख भी कोई भूल सकता है, ओर वो भी इतनी जल्दी ?
यही आज का दौर है
जवाब देंहटाएंजी। पढ़ने के लिए बहुत आभार।
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