कला के प्रति समर्पित एक अव्वल दर्जे के कलाकार दोस्त के जीवन का एक सच्चा प्रसंग ....
रोशन की शादी
दो दिन में दूसरी बड़ी ख़ुशी l ऐसा पहले भी कभी हुआ था, रोशन को याद नहीं आ रहा था l परसों ही उसे नाटक में लीड रोल मिला था और आज खबर मिली कि सुलेमान मिर्ज़ा साहब मुख्य अतिथि होंगे l
सुलेमान साहब को गुरु मानता था रोशन l वही तो थे जिन्होने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में उससे पहली बार अभिनय करवाया था वरना लोग तो उसे बस गायक मानते थे l फिर कभी उनसे मिलना नहीं हुआl
रोशन ठान चुका था कि नाटक के बाद सुलेमान साहब से मिलेगा और इस बार उनका फोन नंबर लेना नहीं भूलेगा l
नाटक के दौरान सुलेमान साहब दो -तीन बार उसकी ओर देख कर मुस्कुराये थे l नाटक खत्म हुआ तो रोशन ने फुर्ती से कपड़े बदले और बाहर भागा l सुलेमान साहब जा चुके थे l रोशन को घोर निराशा हुई l संघर्षशील शिष्य को गुरु का आशीर्वाद बूटी जैसा लगता है l रोशन को अपने गुरु के आशीर्वाद की जरूरत थी l
अगले दिन उसे एक फ़ोन आया l नंबर अनजान था l उसने अनमना-सा 'हेलो ' बोला तो जवाब आया, "मंज गए हो मियाँ तुमl"
"जी? " रोशन समझ नहीं पाया था l
"मिर्ज़ा बोल रहा हूँ, बरखुरदार "
रोशन सन्न रह गया l मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी l गूंगों की तरह टूटा -फूटा कुछ बोला l
"क्या बड़बड़ा रहे हो? कल जरूरी काम था सो एक दम निकालना पड़ा l तुम्हारा नंबर ढुँढवाया हैं l क्या कर रहे हो आजकल? " सुलेमान साहब बोले l
"जी.. जी नौकरी l"
"बम्बई आ सकते हो? 29 को एक नाटक कर रहे हैँ l"
बिना कुछ सोचे रोशन ने बोल दिया, "आ जाऊँगा, सर l"
"परसों पहुँच जाओ l मैं कल पहुँच रहा हूँ l" गुरु ने फरमान सुना दिया l
"जी" कहकर रोशन सोच मे पड़ गया, " मुझे भी तो कल ही निकालना पड़ेगा l साहब की तरह हवाईजहाज़ से थोड़े ही जा सकता हूँ मैं l"
"बाकी बातें मुंबई में होंगींl" सुलेमान साहब ने फ़ोन काट दिया l
दो दिन में बम्बई पहुँचना ही इकलौती समस्या नहीं थी l 31 को रोशन की शादी थी यानि शो से दूसरे दिन l कार्ड छप चुके थे l लव अर्रेंज मैरिज थी l ऐसी शादियों में लड़की वाले आखिरी क्षण तक आश्वस्त नहीं होते हैँ खासकर तब जब लड़का खस्ता हाल हो l दिशा के बाऊ जी कहीं ये ना सोच लें कि लड़का शादी से पहले ही भाग गया l
घर जाकर रोशन ने पिता जी को सब बता दिया l उन्होंने तीन चार मिनट सोचा और पूछा, "शादी पर तो आ जाओगे ना? "
"जी, पक्का आ जाऊँगा l"
"जाओ, यहाँ मैं संभाल लूँगा l बस आ जाना l"
जेब में साढ़े सात सौ रूपये पड़े थे l रोशन बिना रिजर्वेशन ही गाड़ी में सवार हो गया l सुलेमान साहब के ऑफिस पहुँचा और अपनी शादी का कार्ड सामने रख दिया l
"किसकी शादी है? "
"जी मेरी "
"कितने बरस के हो? "
"छब्बीस "
"छब्बीस में शादी कर लेता है कोई? "
रोशन कुछ ना बोला l
"लड़की कौन है? "
"शंभु जी की बेटी "
सुलेमान साहब ने आधी नाक पर रखा चश्मा उतारा, "क्या..कौन से नंबर की? "
"जी तीसरे "
"मियाँ, दुनिया वाकई बहुत छोटी है यार l कितने बरस साथ काम किया है हमने और शंभु जी ने l फ़ोन मिलाओ उन्हें l"
सुलेमान साहब ने शंभु जी से आधा घंटा बात की l पिछले सारे सालों की कसर निकाल रहे हों जैसे l शंभु जी को बता भी दिया कि उनकी बेटी का दूल्हा 29 तक तो बम्बई में ही रहेगा l अंत में आश्वासन भी दे दिया कि दूल्हे को 31 तक लखनऊ पहुँचाना उनकी जिम्मेदारी l
"पागल हो तुम l बताते तो शादी है तुम्हारी l अगले शो में आ जाते l ये कोई आखिरी नाटक है हमारा? "
"मौका नहीं छोड़ना चाहता था , सर "
"चलो फिर, जुट जाओ l तूफानी शो होना चाहिए l"
शो हिट रहा l रोशन 31 की सुबह लखनऊ पहुँच गया l अम्मा ने घर सिर पर उठा रखा था l शंभु जी के पेट में हौला था l दो घंटे में हल्दी भी चढ़ी, मेहंदी भी लगी और कंगना भी बंधा l सुलेमान साहब बारात में घोड़ी के साथ-साथ चल रहे थे l शिष्य के लिए तो हर गुरु भगवान होता है पर गुरु के लिए भी कुछ शिष्य खास होते हैँ l
उम्दा♥️
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका
जवाब देंहटाएंLovely story
जवाब देंहटाएंThanks a lot, Alisha ji
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