मुस्कुराइए, आप लखनऊ में है
इस बार लखनऊ कुछ ज्यादा ही साफ सुथरा लगा। ट्रैफिक कहीं कहीं दिल्ली जैसा ही था। आलमबाग से कैंट होते हुए गोमती नगर तक का ओला का सफ़र मजेदार रहा। केंटोनमेंट की सड़क के किनारे पर शिवमंगल सिंह सुमन जी की "पुष्प की अभिलाषा" पढ़ कर खुद के उनकी बिरादरी का (कवि) होने पर गर्व हुआ।
जनेश्वर मिश्र पार्क के बाहर लगी सूर्य नमस्कार करती प्रतिमाएं आकर्षक थी। वीडियो बनाना चाहता था लेकिन थका हुआ था। पंख वाले सात घोड़ों का चौराहा और डिवाइडर की हरियाली देख कर गर्व हुआ कि मेरे राज्य की राजधानी भी कुछ कम नहीं है।
गोमती नगर से महानगर तक की ओला के ड्राइवर कुछ ज्यादा ही बातूनी थे। मेरे सारे प्रश्नों का उन्होंने किसी लखनऊ
वासी की तरह ही गर्व से विस्तारपूर्वक उत्तर दिया। मायावती, अखिलेश यादव और योगी जी तीनों के कार्यकालों में अंतर का अपना विश्लेषण किया।
मायावती के हाथी वाले पार्क और जनेश्वर मिश्र पार्क का उनका अंतर मजेदार था।
"जनेश्वर मिश्र पार्क अखिलेश बनाए थे। बड़ा है बहुत। मायावती के पार्क में फैमिली आती हैं। सन्डे है ना, सो भीड़ है। जनेश्वर मिश्र पार्क में लड़का लडकी आते हैं। कही कोने में बैठ कर घुपशुप कर लेते हैं।"
महानगर से वापसी का सफ़र हमने लखनऊ मेट्रो से किया। चारबाग रेलवे स्टेशन के गुम्बद की रोशनी के बदलते रंग राज्य की राजधानी के वैभव का गीत गा रहे थे। आलमबाग का सर्राफा बाजार रौनक से खनक रहा था।
लखनऊ जाकर अब दोबारा कहा जा सकता है शायद "मुस्कुराइए, आप लखनऊ में हैं"
गौरव शर्मा