गुरुवार, 22 अगस्त 2019

आई.सी.यू.



आई.सी.यू.






आई.सी.यू. के पलंग पर पड़ा
वो निसहाय निरीह आदमी 
जिंदगी और मौत को झगड़ते 
देखता है खामोश डरा हुआ 
जैसे कोई बच्चा कोने में 
दुबका देखता है 
अपने माँ-बाप को झगड़ते हुए 
नहीं जानता वो किसके हिस्से में जाएगा l

बाहर रिश्तेदारों की भीड़ है 
पता नहीं वो थैले में 
आशा और हौंसला लाए हैं 
या आखिरी बार मिल लेने की औपचारिकता 
सबके पास बातें हैं, किस्से हैं, 
पर उसके लिए शायद इतना काफी है 
कि वो आए हैं 
किसी के लिए वक़्त खर्च देना 
भी तो बड़ी बात है 


साँसों का मोहताज वो आदमी 
महसूस करता है 
अपनी कमर के नीचे तड़पती 
अपनी जिम्मेदारियाँ,
बच्चों का भविष्य और
पत्नी का सिन्दूर 
वो चाहता है कमर उचका कर 
उन सब को अलग हटा दे 
पर वो चुभन जिन्दा होने का अहसास है l

अभी कुछ देर पहले ही 
सब मिल गए हैं उससे
माथे की सिलवटों को 
बड़ी शिद्दत से छुपाकर
दो दिन बाद बेटी की फीस भरनी है 
एक हफ्ते बाद बेटे का जन्मदिन है 
और महीने बाद करवा-चौथ है शायद 
उसने देखा था 
सबकी ख्वाहिशें पिघलकर 
आँखों में जमा होने लगीं थीं l

कल तक भाग भाग कर 
उसने सारे कर्तव्यों की किश्त भरी थी 
रात को खाना बड़े प्यार से परोसा था पत्नी ने 
उसने बड़े चाव से खाया था 
पर आधी रात अचानक जिंदगी कसमसाने लगी 
बेचैनी, घबराहट, पसीना- 
सासें उखड़ने लगी 
कुछ देर बाद वो पतंग जैसा था 
जिसकी डोर कफ़न-सा सफ़ेद कोट पहने 
डॉक्टरों के हाथ में थी 
जो शायद भावनाएँ
अपने बैंक के लाकर में रख आये थे 
रोज़ न जाने कितने आते थे उस जैसे 
खर्च करते भी तो किस-किस पर करते l

वो चाहता था उठ कर भाग जाना 
कर्तव्यों की अगली किश्त जुटाना 
पर उसका शरीर उसके वश में ना था
पर अपंग भावनाएँ थीं 
जो आसमान समेट लाना चाहतीं थीं 
सारे कर्तव्य एक साथ पूरे कर देना चाहतीं थीं 
वो जिम्मेदारियों को कमर के नीचे से निकालकर
अपने पेट पर रख लेता है 
और मौत से मोहलत माँगने लगता है l

शनिवार, 20 जुलाई 2019

परवर्ट... यानि छिछोरा




परवर्ट... यानि छिछोरा 



सेंट स्टीफेन कॉलेज के सामने की सड़क  रोज की तरह  उस दिन भी सुनसान थी l नार्थ कैंपस का सबसे वीरान इलाका था ये जबकि देश के सबसे विलक्षण युवा पढ़ते होंगे यहाँ l
कॉलेज के गेट से पचास मीटर दूर बस स्टॉप पर सुजॉय  अकेला खड़ा था l पिछले आधे घंटे में कॉलेज के मैन गेट से कई महँगी गाड़ियाँ और मोटर -साइकिल धड़धड़ाती हुई निकल गईं थीं l पर बस स्टॉप पर कोई नहीं आया l 

वहाँ खड़े-खड़े काफी वक़्त निकल गया था l डीटीसी की बसें हमेशा से ही बड़ी मूड़ी रही हैं l 
तभी कॉलेज के गेट से रौनक बहार आई l "शायद मेरे  लम्बे इंतज़ार का इनाम है ये ," सुजॉय ने सोचा  l खादी ग्रामोद्योग  वाला कुर्ता और काली जीन्स l बुद्धिजीवियों वाला पहनावा l  साथ में लोटो के स्पोर्ट्स शूज l मझली लम्बाई वाले खुले बाल जो दिल्ली की गर्मी से बेहाल निस्तेज कांधो पर पड़े थे l वो जब तक सुजॉय तक पहुंची, वो  उसका सम्पूर्ण आकलन कर चुका था l मन ही मन चाह रहा था कि वो भी वहीँ आकर खडी  हो जाए और फिर वो  दोनों बस का इंतज़ार करें l 

वो सीधा सुजॉय तक आ गई l वो  खुश तो था पर सकपका गया था l 

उसने अपना कुर्ता एक तरफ से ऊपर किया और जेब में हाथ डालकर सिगरेट  की डब्बी निकाली l फिर सुजॉय की  आँखों में देखकर बोली, "डू यू हैव ए लाइट ?" 

सुजॉय  भावशून्य सा उसे देखता रहा l पता नहीं अचम्भा था या मलाल l पहली बार किसी लड़की ने सिगरेट जलाने के लिए उससे  माचिस माँगी थी l और उसके  पास थी नहीं l 

अपना आग्रह दोहराने के लिए उसके होंठ हिले ही थे कि सुजॉय ने  'सॉरी' बोल दिया l वो हल्का सा मुस्काई मानो लानत भेज रही हो और आगे बढ़ गई l सुजॉय का मन हुआ उसका पीछा करे  पर उसने  ठीक नहीं समझा l वो बस उसे दूर जाते हुए देखता रहा l उसे रास्ते में जो भी मिला उसने उनसे माचिस माँगी लेकिन उसकी सिगरेट की उम्र शायद बाकी थी l 

दिन भर सिगरेट-सुंदरी सुजॉय के  ख्यालों में आती-जाती रही l अगले दिन वो  उस ही समय पर सेंट स्टेफेन के बस स्टैंड पर पहुँच गया था और माचिस भी खरीद कर जेब में रख ली थी l 

लगभग उस ही समय पर वही लड़की कॉलेज के गेट से बहार आई l नीली ज़मीन पर सफ़ेद फूलों वाली फ्रॉक बमुश्किल घुटनों तक पहुँच रही थी l पर उसमे वो पिछले दिन से ज्यादा छरहरी लग रही थी l

बाल वैसे ही थे जैसे किसी बच्चे को डाँट-डपट कर बिठा दिया हो l वो सुजॉय के  पास पहुँचती उससे पहले ही उसने  माचिस निकाल कर इशारे से उसे दिखा दी l वो मुस्कुराई, "आई  डोंट  हैवे ए सिगरेट टुडे l " कहकर आगे बढ़ गई l 

निराशा कुछ क्षणों में ही सुजॉय के  उत्साह को लील गई l उसने  खुद को कोसा , "माचिस के साथ दो सिगरेट भी खरीद लेता तो क्या चला जाता l "

अगले दिन क्लासिक रेगुलर की डब्बी और म्यूजिकल लाइटर के साथ सुजॉय  मोर्चे पर तैनात था l उत्साह और उमंग दोनों उफन रहे थे l 
वो कुछ मिनट जल्दी निकल आई थी l सुजॉय  उसे देखते ही आगे आ गया और मुस्कुराने लगा l एक हाथ में सिगरेट की डब्बी और एक हाथ में लाइटर l 

वो कुछ पंद्रह कदम दूर थी जब सुजॉय से  रहा नहीं गया , " आज मैं दोनों लाया हूँ l "
वो गंभीर थी l "इवन आई हैव बोथ ... बट , इट सीम्स, यू आर ए परवर्ट l फ़क ऑफ और आई  विल कॉल पुलिस l "
सुजॉय आगे बढ़ गया l परवर्ट... यानि छिछोरा l सही तो कहाँ उसने l 
सुजॉय कई दिनों तक किसी लड़की  को आँख उठाकर देख नहीं पाया l 

रविवार, 26 मई 2019

रोशन की शादी


कला के प्रति समर्पित एक अव्वल दर्जे के कलाकार दोस्त के जीवन का एक सच्चा प्रसंग ....

                     रोशन की शादी 





दो दिन में दूसरी बड़ी ख़ुशी l ऐसा पहले भी कभी हुआ था,  रोशन को याद नहीं आ रहा  था l परसों ही उसे नाटक में लीड रोल मिला था और आज खबर मिली कि सुलेमान मिर्ज़ा साहब मुख्य अतिथि होंगे l

सुलेमान साहब को गुरु मानता था रोशन l वही तो थे जिन्होने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में उससे  पहली बार अभिनय  करवाया था  वरना लोग तो  उसे बस गायक मानते थे l फिर कभी उनसे मिलना नहीं हुआl 
रोशन ठान चुका था कि नाटक के बाद सुलेमान साहब से मिलेगा और इस बार उनका फोन नंबर लेना नहीं भूलेगा l

नाटक के दौरान सुलेमान साहब दो -तीन बार उसकी ओर देख कर मुस्कुराये थे l नाटक खत्म हुआ तो रोशन ने फुर्ती से कपड़े बदले और बाहर भागा l सुलेमान साहब जा चुके थे l रोशन को घोर निराशा हुई l संघर्षशील शिष्य को गुरु का आशीर्वाद बूटी जैसा लगता है l रोशन को अपने गुरु के आशीर्वाद की जरूरत थी l 
अगले दिन उसे एक फ़ोन आया l नंबर अनजान था l उसने अनमना-सा 'हेलो ' बोला तो जवाब आया,  "मंज गए हो मियाँ तुमl"
"जी? " रोशन समझ नहीं पाया था l
"मिर्ज़ा बोल रहा हूँ,  बरखुरदार "
रोशन सन्न रह गया l मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी l गूंगों की तरह टूटा -फूटा कुछ बोला l
"क्या बड़बड़ा रहे हो?  कल जरूरी काम था सो एक दम निकालना पड़ा l तुम्हारा नंबर ढुँढवाया हैं l क्या कर रहे हो आजकल? " सुलेमान साहब बोले l
"जी.. जी नौकरी l"
"बम्बई आ सकते हो?  29 को एक नाटक कर रहे हैँ l"
बिना कुछ सोचे रोशन ने बोल दिया,  "आ जाऊँगा,  सर l"
"परसों पहुँच जाओ l मैं कल पहुँच रहा हूँ l" गुरु ने फरमान सुना दिया l
"जी" कहकर रोशन सोच मे पड़ गया,  " मुझे भी तो कल ही निकालना पड़ेगा l साहब की तरह हवाईजहाज़ से थोड़े ही जा सकता हूँ मैं l"
"बाकी बातें मुंबई में होंगींl" सुलेमान साहब ने फ़ोन काट दिया l
दो दिन में बम्बई पहुँचना ही इकलौती समस्या नहीं थी l 31 को रोशन की शादी थी यानि शो से दूसरे दिन l कार्ड छप चुके थे l लव अर्रेंज मैरिज थी l ऐसी शादियों में लड़की वाले आखिरी क्षण तक आश्वस्त नहीं होते हैँ खासकर तब जब लड़का खस्ता हाल हो l दिशा के बाऊ जी कहीं ये ना सोच लें कि लड़का शादी से पहले ही भाग गया l
घर जाकर रोशन ने पिता जी को सब बता दिया l उन्होंने तीन चार मिनट सोचा और पूछा,  "शादी पर तो आ जाओगे ना? "
"जी,  पक्का आ जाऊँगा l"
"जाओ,  यहाँ मैं संभाल लूँगा l बस आ जाना l"
जेब में साढ़े सात सौ रूपये पड़े थे l रोशन बिना रिजर्वेशन ही गाड़ी में सवार हो गया l सुलेमान साहब के ऑफिस पहुँचा और अपनी शादी का कार्ड सामने रख दिया l
"किसकी शादी है? " 
"जी मेरी "
"कितने बरस के हो? "
"छब्बीस "
"छब्बीस में शादी कर लेता है कोई? "
रोशन कुछ ना बोला l
"लड़की कौन है? "
"शंभु जी की बेटी "
सुलेमान साहब ने आधी नाक पर रखा चश्मा उतारा,  "क्या..कौन से नंबर की? "
"जी तीसरे "
"मियाँ,  दुनिया वाकई बहुत छोटी है यार l कितने बरस साथ काम किया है हमने और शंभु जी ने l फ़ोन मिलाओ उन्हें l" 
सुलेमान साहब ने शंभु जी से आधा घंटा बात की l पिछले सारे सालों की कसर निकाल रहे हों जैसे l शंभु जी को बता भी दिया कि उनकी बेटी का दूल्हा 29 तक तो बम्बई में ही रहेगा l अंत में आश्वासन भी दे दिया कि दूल्हे को 31 तक लखनऊ पहुँचाना उनकी जिम्मेदारी l
"पागल हो तुम l बताते तो शादी है तुम्हारी l अगले शो में आ जाते l ये कोई आखिरी नाटक है हमारा? "
"मौका नहीं छोड़ना चाहता था ,  सर "
"चलो फिर,  जुट जाओ l तूफानी शो होना चाहिए l"

शो हिट रहा l रोशन 31 की सुबह लखनऊ  पहुँच गया l अम्मा ने घर सिर पर उठा रखा था l शंभु जी के पेट में हौला था l दो घंटे में हल्दी भी चढ़ी,  मेहंदी भी लगी और कंगना भी बंधा l सुलेमान साहब बारात में घोड़ी के साथ-साथ चल रहे थे l शिष्य के लिए तो  हर गुरु भगवान होता है पर गुरु के लिए भी कुछ शिष्य खास होते हैँ l



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