शनिवार, 17 मार्च 2018

पलाश के फूल






                                पलाश के फूल









बैंक की सीढ़ियाँ उतर फुटपाथ पर कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि सड़क किनारे लगे पलाश के पेड़ से टूट कर दो फूल मेरे आगे गिरे। मैं ठिठक गया। बचपन से ही बड़ा लगाव है मुझे पलाश के फूलों से। रंग ऐसा होता है मानो सुबह, नहा-धोकर पूजा की थाली लेकर खड़ी हो। आकार ऐसा जैसे पर्वतों के बीच कोई मनोरम घाटी आशाओं का अम्बार लिए निमंत्रण दे रही हो। इन फूलों की उपस्थिति इतनी भव्य और प्रभावशाली होती है कि   पलाश के पेड़ को इन फूलों के बिना, केवल वनस्पतियों का वृहत ज्ञान रखने वाले ही पहचान पाते होंगे। मैं आज तक भी बस फूलों को ही  पहचान पाता हूँ। लाल और हरे का जैसा विहंगम समागम पलाश में होता है वैसा तो तोते में भी नहीं होता।





"जिस  पेड़ का अस्तित्व ही उसके फूलों से हो, उसे क्या उन्हें कभी  अलग करना चाहिए ? कितना कृतध्न पेड़ है। शाख पर ही सूख कर झड़ जाँए तो क्या चला जाएगा ।" मैं सोच रहा था।


मैं गिरे हुए फूलों को उठा पाता, एक गाड़ी के पहिये ने उन्हें निर्ममता से कुचल दिया। असामयिक मृत्यु हो गई दोनों की। कुछ क्षण और निहारा मैंने उन्हें , फिर आगे बढ़ गया। 









 सही तो हुआ। उन फूलों का परित्याग उस पेड़ ने किसी कारण से ही किया होगा। मौत, परिवार द्वारा त्याग दिए जाने से बड़ा कष्ट नहीं है। न तो इन्हें कोई गुलदस्ते में सजाता और न ही जूड़े में। अच्छा हुआ, जल्दी मुक्ति मिल गई।