बुधवार, 28 दिसंबर 2016

कैलेंडर




                                   कैलेंडर





एक कील पर टंगा
सपनों का थैला
उम्मीदों का पिटारा
सीली दीवार की 
पपड़ियों को संभाले अड़ा
जिंदगी की खुशबु लिए 

बिना कुछ कहे
कितना कुछ कह जाता है 

बस एक साल जीता है कैलेंडर
पर मरता कभी नहीं।

बारह पन्ने
तीन सौ पैंसठ खाने
ना कोई बड़ा ना कोई छोटा
कुछ लाल कुछ काले
कुछ चाभियाँ भविष्य की
कुछ अतीत के ताले

कुछ याद रखने के,
कुछ याद रह जाने के निशान

बस एक साल जीता है कैलेंडर
पर मरता कभी नहीं।

हर खाना  दस्तावेज़ रिश्तों का 
गिनती और हफ़्तों के दिनों का,
एक छिपी तस्वीर
एक स्याही एक तारीख

उछलती रहती हैं खानों में,
जुड़ती रहतीं हैं दिनों से 

कभी सूनी, विधवा सी
कभी टिप्पणी से सजी
बस एक साल जीता है कैलेंडर
पर मरता कभी नहीं।


कभी पूर्णिमा कभी अमावस
कभी त्यौहार की खुशबु
कभी श्राद्ध की श्रद्धा
कभी सूना कभी सज्जा

कभी उमंग जन्मदिन की,
किसी अमंगल का डर कभी,
कभी चिंता, कभी मंथन,
कभी पूजा, कभी वंदन,

बस एक साल जीता है कैलेंडर
पर मरता कभी नहीं।


हर खाने में कुछ बीती बातें
कुछ मीठी, कुछ कड़वी यादें
मुट्ठी भर आशाएँ
एक प्यारा सा वादा
कि फिर सूरज जगेगा
परिवर्तन नृत्य करेगा
जीवन फिर जियेगा
                                                                           सतत चलते रहने का सन्देश 
बस एक साल जीता है कैलेंडर
पर मरता कभी नहीं।


हर एक खाना जीता है 
 सुबह चहकता उठता है
चौबीस घंटों ने जो कुछ कहा
समेट कर रख लेता है
चुपचाप सरक जाता है
न शिकायत न जिद
सहनशक्ति की परिभाषा सा
एक खाना गुजर जाता है
बस एक साल जीता है कैलेंडर
पर मरता कभी नहीं।



छोटी हो जिंदगी 
पर यादगार हो 
जीने का तरीका
सिखाता है कैलेंडर
हर एक पल एक सांस 
खर्च कर देता है,
हम जीएं ना जीएं,
वो चल देता है
बस एक साल जीता है कैलेंडर
पर मरता कभी नहीं।



2 टिप्‍पणियां:

  1. बस एक साल जीता है कैलेंडर
    पर मरता कभी नहीं।
    ......
    awesome

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद, सुभाष जी| निवेदन करूँगा कि कहानी " गुलाब के फूल " अवश्य पढ़ें

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