गुरुवार, 22 सितंबर 2016

सुनो बे , आतंकवादी ! पढ़ो इसे...



               सुनो बे , आतंकवादी ! पढ़ो इसे...




पढ़ना आता है? 

अनचाही औलादें ही तो हो तुम सारे। अबे! नौ महीने माँ ने कोख में कोस-कोस के रखा होगा तुम्हें। फिर रो-रो के पाला होगा। जब तुम जीने लायक होते हो तो ऊपरवाले के नाजायज दलाल तुम्हें या तो तुम्हारे माँ-बाप से खरीद लेते हैं या तुम्हें बरगलाके ट्रेनिंग के लिए ले जाते हैं।





वहाँ जी तोड़ मेहनत करते हो। मिशन पर आते हो। दो, चार, दस बीस लोगों को मारते हो और खुद कुत्ते की मौत मरते हो। एक टाँग पकड़ कर घसीटे जाते हो। तुम्हारी लाशों पर थूकते हैं लोग।
अल्लाह तो क्या तुम्हें अपनी पनाह में लेगा? सालों, तुम्हारे माँ-बाप भी तुम्हें पहचानने से इंकार कर देते हैं। पूरी कब्र भी नसीब नहीं होती तुम्हें।


कितनी बेकद्री की जिंदगी जीते हो बे तुम? इसलिए न तो तुम्हें जिंदगी की कीमत पता होती है, और न मौत की | आजकल तो कूड़ा-करकट भी काम में आने लगा है बस तुम ही रह जाते हो | साले एक ही कब्र में जितने भी होते हो न, सारे के सारे दफना दिए जाते हो |



आधे अधूरे बचते हो तुम | कभी कुछ गायब होता है कभी कहीं से मिसिंग होते हो | साल, कोई सिस्टम हो न, तो तुम्हें दिखाएँ, तुम्हारी मौत का कैसा तमाशा बनाते हैं हम भी, और वो तुम्हारे पागल, उपरवाले के जबरदस्ती के दल्ले भी |



और, क्या दहशत फैलाते हो तुम?

 १३० करोड़ आबादी वाले मुल्क में से दस-बीस को मार कर क्या उखाड़ लोगे बे तुम। वो भी इतनी तैयारी के बाद। साला, जितने साल तुम पागल बनने में लगाते हो, उतने लोगों को मार नहीं पाते और बात करते हो जन्नत और अल्लाह की?
गिरेबां में झाँक के देखो, तुम्हारी जिंदगी ज़लालत से ज्यादा कुछ नहीं है। 





तुम महज अपने सनकी आकाओं की इस्तेमाल की चीज हो बेटा और कुछ नहीं। अबे! तुम से ज्यादा कीमती तो उनके लिए उनका कुत्ता होता है और तुमसे ज्यादा ख्याल तो वो अपने कच्छों का रखते हैं।


मरते रहो। इतने सालों में तुमने हमारा क्या बिगाड़ लिया, कभी ये भी सोचना। हमारे देश में मुल्क परस्त बहुत हैं। तुम तो साले औलाद पैदा किये बगैर जेहाद करते रहो। नस्ल खत्म हो जाएगी बेटा, होगा कुछ नहीं।
आते रहो, हम कितने भी मरें पर तुममें से कोई वापिस नहीं जाएगा।

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