बुधवार, 17 अगस्त 2016

बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बांधा है ..



                                                     

                         बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बांधा है ..


                                                                   
                                               सच्ची भावनाओं का त्यौहार- रक्षाबंधन 



कल रक्षाबंधन है। भाई -बहन के पावन रिश्ते का पर्व। न रोशनी का, ना रंगों का, न असत्य - सत्य का, बस भावनाओं का पर्व।

एक कोमल सा धागा जब भाई की कलाई पर सज जाता है तो वह कोमल नहीं रहता। बहनें धागे में गूँथकर अपार स्नेह व भावनाएँ बाँधती है। कुछ दिन बाद, भाई जब उस धागे को उतारता है तो तोड़ता नहीं, बड़ा जतन लगा के खोलता है और उसे संभाल कर रखता है।


व्यक्तिगत रूप से मुझे यह त्यौहार बहुत भाता है। शायद इसलिए कि मैं एक भावुक व्यक्ति हूँ । छोटी-छोटी बात पर मेरी आँखें भीग जातीं हैं। यह लिखते समय भी आँसु आँखों के मुहाने पर छटपटा रहे हैं। अभी कुछ देर पहले ही अपने विधार्थियों से रक्षाबंधन पर बात करते-करते मेरा गला रुंध गया था। मेरा मानना है कि निष्ठुर से निष्ठुर व्यक्ति इस दिन अपनी बहनों के प्रति संवेदनशील हो जाता होगा। इसलिए अपने भावनात्मक रविए पर मुझे शर्मिंदगी नहीं होती।


आज सुबह से ही ऐसा हो रहा है। जैसे ही थोड़ा सा खाली होता हूँ, मन बचपन के अहाते में भाग जाता है।



रक्षाबंधन पर स्कूल की छुट्टी तो होती ही थी। मम्मी पता नहीं कब की उठी होतीं थी। झाड़ू- पोंछा हो चुका होता था जब वो हमें उठाने के लिए झिंझोड़ती थी। भगवान के आले के दोनों ओर व सारे दरवाजों पर खड़िया से चकोर पुता होता था। मैं उठते ही गीली खड़िया पर उंगली लगाता था तो मम्मी हल्की-सी चपत लगा कर कहती थी, " मरे, पूजा होगी। झूठे हाथ लगाता है।"


नहाने के बाद सोहन पुजते थे। हमारे यहाँ यह मर्द ही पूजते हैं। कटोरी में गेरू घुला होता था व माचिस की तिली पर रुई लिपटी  होती थी। पापा सफेद चकोर पर "श्री कृष्ण शरणम् मम:" लिखते थे। गुंधे आटे की बत्तियों से कलावे का हार लगाते थे और रोली के छींटे मार कर जवें का भोग लगाते थे। मैं पूजा की थाली पकड़े ध्यान से सब देखता था।
उस समय मम्मी रसोई में कड़ी चावल बना रही होती थीं। लम्बे श्रावण मास के बाद कड़ी की अटक खुलती है रक्षाबंधन वाले दिन। 


फिर मेरी तीन बहनें मुझे राखी बाँधती थथीं, मीठा खिलाती थीं और आरती उतारती थीं। फिर मैं पापा के दिए हुए पैसे उन्हें देता था।
मैं शैतान था पर उस दिन बड़ा ही संवेदनशील और भावुक हो जाया करता था। अपनी बहनों के प्रति सदा से ही बहुत अधिक प्रोटेक्टिव रहा हूँ मैं, शायद हर रिश्ते के प्रति ऐसा ही हूँ। एक मुझसे बड़ी बहन भी है मेरी लेकिन उसे भी छोटा समझ छाँव देने की कोशिश करता रहता हूँ आज भी। या यह कह सकते हैं कि अकड़ दिखाता रहता हूँ। 


इस त्यौहार की सबसे अच्छी बात है घर में लगने वाला जमावड़ा। बुआओं का आना फिर मम्मी का मामाओं के घर जाना। मूल्य बताकर नहीं सिखाए जाते। निभाकर सिखाए जाते हैं। 


आज बहुत से युवा बच्चों से बात हुई। मैंने पूछा कि उन्हें रक्षाबंधन के बारे में सबसे अच्छा क्या लगता है तो अधिकतर बच्चों का उत्तर था 'घर में सबका आना'। सुनकर मेरी आँखें नम हो गईं। विश्वास थोड़ा प्रबल हुआ कि आधुनिकता भावनाओं को निगल नहीं  सकती।


कुछ युवतियों ने कहा कि वे उपहार मिलने को लेकर उत्साहित हैं। तब मैंने उन्हें एक सच्ची कहानी सुनाई। आपको भी सुनाता हूँ।


बहुत साल पहले की बात है। एक भाई की माली हालत ठीक नहीं थी। बहन राखी बाँधने आई तो इक्कीस रुपये ही दे पाया वह। बहन का मुँह बन गया। बोली, " भाई, मिठाई का डिब्बा, राखी, गोला, और आने जाने का मिला कर दो सौ रुपए के करीब खर्च हुए हैं मेरे। उतने तो देता। इससे अच्छा तो मैं डाक से भेज देती तेरी राखी।"
भाई बहुत शर्मिंदा हुआ। उसके बाद न बहन कभी राखी बाँधने आई और न ही भाई ने उसे बुलाया। बहन अमीर ममेरे भाई को राखी बाँधने जाने लगी। भाई त्यौहार वाले दिन रोता रहता।


कहानी सुनकर लड़कियों ने भी उस बहन को धिक्कारा। रिश्तों का आधार कभी भी पैसा नहीं हो सकता।

सोन आज भी पूजे जाते हैं। बस बाज़ार में रेडीमेड मिलने लगे हैं। मिठाई की जगह चाकलेट प्रचलन में है । आज भी लड़कियाँ क्लास के लड़कों को राखी बाँधती हहैं। आज भी महिलाएँ कई दिन पहले ही राखी की तैयारियों में जुट जाती हैं। हम कितने भी आधुनिक हो जाएं, मन में हम जानते हैं कि सच्ची खुशी कहाँ, कब और कैसे मिलती है।


बच्चों से बात करते समय उनकी आँखों में चमक देखकर बहुत सुकुन मिला। यह बदलते परिवेश, बदलते आचरण, बदलती विचारधारा, बदलता खानपान हम पर कितना भी प्रभाव डाल लें, हमारे पर्व हमें एकदम से अपनी जड़ों में वापस ले जाते हैं, एक दिन के लिए ही सही।


तो, आप सब भी पूरे उल्लास 

और भावनाओं से ओतप्रोत होकर इस पर्व को मनाइए और अपने भाई या बहन के लिए अपने स्नेह को नए आयाम पर ले जाइए।


आप सभी को रक्षाबंधन के अनूठे पर्व की शुभकामनाएं।

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