शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

और दस वर्ष बाद



चलो,  आज फिर से  .......


 


चलो आज ज़िन्दगी को ठेंगा दिखाकर,
कुछ देर भरपूर जी लेते हैं |
कठपुतली बनकर नाचना ही तो है,
आज अपनी रस्सी काट छुट्टी कर लेते हैं,
चलो एक दिन के लिए फिर से,
प्रेमी-प्रेमिका बन लेते हैं |


नुक्कड़ की रेहड़ी से चुस्की खरीदेंगे,
हर बार बच्चे 'हाईजीनिक  नहीं है' कहकर
टाल देते हैं न,
आज चूस लेते हैं,
'कोई क्या कहेगा' की चिंता,
रेज़गारी में दे देते हैं |


फिर टहलते हैं, उँगलियों में उँगलियाँ फँसाये,
देने दो उम्र ताने देती है तो,
कानों में बेशर्मी की रुई डाल लेते हैं |

पार्क की बेंच पर सट कर बैठेंगे,
मुद्दतें हुईं चलो, एक दूजे की
आँखें बांच लेते हैं,
जितने अधलिखे प्रेम पत्र
संकोच की टोकरी में भरे पड़े हैं,
एक-एक कर सारे पढ़  लेते हैं |

फिर मेरे कंधे पर सर रखकर,

तुम  कुछ गुनगुनाना
अपनी बारी में मैं तुम्हारी
गोद में सर रख लूंगा,
आज फिल्मों के पात्रों सा
बन के देख लेते हैं |


ज़रा देना तो ऊपर वाले को रिश्वत,
कहना मौसम का रिमोट हमें दे दे |
आज साथ साथ बारिश में,
झूम लेते हैं |
और जब वो रुक जाएगी न,
तो खरीदेंगे आम,
घुटनो तक मोड़कर कपडे,
भरे पानी में छप-छप करते चलेंगे,
आओ एक दूसरे  के हाथों से
आम चूस लेते हैं |

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