रविवार, 31 जुलाई 2016

दोस्ती




                                                                               




                                                                                दोस्ती



संजय मेरे लिए मित्र से बढ़कर था। मैंने सदा ही उसे एक बड़े भाई की तरह सम्मान दिया था और मेरे प्रति उसका व्यवहार भी छोटे भाई सरीखा ही था। लेकिन उस दिन उसने सिद्ध कर दिया कि उसका स्नेह आडंबर नहीं था ।

चैरिटेबल सोसायटी की मीटिंग में हम दोनों अगल-बगल में बैठे थे। छह महीने से मैं घर पर बैठा था। माली हालत खराब चल रही थी। संजय से जब कहता था , वह मदद को न नहीं कहता था। सोसायटी का लोन लेकर भी हजम कर चुका था मैं।


मीटिंग चल रही थी। अक्सर ऐसी संस्थाओं में पदाधिकारी दूसरे सदस्यों को नगण्य ही समझते हैं। संजय उन्हें सुन रहा था या नहीं, मुझे नहीं पता। लेकिन मैं सिर्फ अपने हालात का विश्लेषण कर रहा था ।

अचानक संजय ने मुझे कुहनी मारी और कहा, 'यार, अपना पैर जरा नीचे रख ले। तेरा जूता लग रहा है बार-बार।'
मैंने माफी माँगते हुए अपना पैर घुटने से उतार लिया। 


मीटिंग खत्म होने पर हम बाहर निकले। संजय ने स्कूटर स्टार्ट किया । मैं अभी भी गुम था। बहुत बोलने वाला संजय भी चुप था। 
मार्केट से  निकलते हुए संजय ने। स्कूटर एक जूतों की  दुकान पर रोक दिया। 


'कुछ लेना है क्या?' मैंने पूछा।


'हाँ, जूते लेने हैं तेरे लिए '


मैं उसे देखता रहा।


'तुझे पता है न, तेरे जूतों में छेद है?'


मैं कुछ बोल नहीं पाया।


'तेरा जूता लग नहीं रहा था मुझे पर उसकी तली का छेद मुझे धिक्कार रहा था। किसी और की निगाह न पड़ जाए इसलिए तुझे पैर नीचे करने के लिए कहा था।'


मेरी आँखों में आँसू तैरने लगे। उसने अपना हाथ मेरे कांधे पर थपथपाया।


'मेरे पास पैसे नहीं हैं अभी । फिर ले लेंगे।'


'मैं लाया हूँ तुझे यहाँ। पैसे भी मैं ही दूँगा। मना करे तो साथ में  ये भी  कह दे  कि तू अजनबियों से मदद नहीं  लेता।'
उस दिन मुझे जूते दिला कर ही माना  वो।


समय गुजर गया। मेरे अच्छे दिन आए और संजय से मेरा मिलना भी कम हो गया। मैं जूतों के पैसे कभी लौटा नहीं पाया। शायद वो लेता भी नहीं। अब मेरे पास आठ जोड़े जूते हैं। बदल-बदल कर पहनता हूँ। लेकिन हर रोज़ चश्मे बाँधते हुए दोस्ती के उन जूतों की याद खुद ही आ जाती है और साथ में आँसू भी। कुछ अहसान चुकाए नहीं जा  सकते। खासकर वो, जो अहसान समझ कर नहीं किए जाते ।


हम मिलें या न मिलें लेकिन संजय जैसे  दोस्त पर मुझे हमेशा नाज़ रहेगा।

3 टिप्‍पणियां: